जीवो में जैव विविधता ➥ Diversity in Living Organisms

जीवो में विविधता
                आप सभी ने अपने चारो ओर हजारो जीव जंतु देखे होंगे  क्या सभी जीव एक सामान होते है या उनमे अंतर् पाया जाता है। निश्चित ही सभी जीव एक सामान नहीं होते है बल्कि उनमे कुछ न कुछ अंतर पाया जाता है। जीवो के बीच पाए जाने वाले इसी अंतर को जैव विविधता कहते है। 
Biodiversity  का अध्ययन करने पर पृथ्वी में लाखो जीव जंतु पाए जाते है जो कुछ माइक्रोमीटर(बैक्टीरिया ) से लेकर 30 मीटर(नील व्हेल ) तक लम्बे होते है। कैलिफोर्निया का रेडवुड पेड़ तो 100 मीटर तक लम्बा होता है।  
  जीवो में जो विभिन्नताएं पायी जाती है इन्हे विकसित होने में लाखो वर्ष का समय लगा है इसलिए जैव विविधता का एक साथ अध्ययन कर पाना संभव नहीं है। इसलिए जीवो को अलग अलग समूहों में बाँटने की आवश्यकता पड़ी। 

 जैव विविधता वर्गीकरण का आधार ➥

                जीवो को समूहों में बाटने का प्रयास अरस्तु ( Father of Biology and Zoology) (यूनानी दार्शनिक ) द्वारा किया  गया इनका वर्गीकरण स्थल ,जल व् वायु में रहने के आधार पर  था  जो की अध्ययन की दृष्टि से उचित नहीं था क्योकि जल में जंतु और पौधे दोनों पाए जाते है जो एक दूसरे से काफी भिन्न है। 
 अतः वर्तमान में जीवो के वर्गीकरण के लिए कोशिका की प्रकृति से प्रारम्भ करके  विभिन्न परस्पर सम्बंधित अभिलक्षणो के देखते हुए किया गया है। जो निम्नांकित है -

  • एक यूकैरियोटिक  कोशिका में कोशिका झिल्ली से घिरे केन्द्रक सहित कुछ कोशिकांग होते है।  जिससे कोशिकीय क्रिया अलग अलग कोशिकाओं में दक्षतापूर्वक होती  है।  लेकिन जिन कोशिकाओं में  झिल्लीयुक्त केंद्रक  व् कोशिकांग नहीं होते उनकी जैव रासायनिक क्रियाये भिन्न होती है। 
  • क्या सभी जीव प्रकाश संश्लेषण द्रारा अपना भोजन स्वयं  बनते है ? स्वयं भोजन बनाने वाले व् बाहर  से भोजन प्राप्त करने वाले जीवो  की शारीरिक सरंचना में आवश्यक भिन्नता पायी जाती है। 
  • जो जीव  प्रकाश संश्लेषण करते है उनमे शारीरिक संगठन किस स्तर का होता है। 
  • उसी तरह जन्तुओ में शारीरिक संगठन किस स्तर का होता है। 
  • क्या सभी कोशिकाएं अलग अलग पायी जाती है या फिर समूहों में पायी जाती है या फिर अविभाज्य समूहों में पायी जाती है। जो कोशिकाएं एक साथ समूह बनाकर किसी जीव का निर्माण करती है उनमे श्रम विभाजन पाया जाता है। अर्थात शारीरिक सरंचना में सभी कोशिकाएं एक सामान नहीं होती है  बल्कि विशिष्ट  करने के लिए विशिष्ट कोशिकाएं पायी जाती है। 

वर्गीकरण और जैव विकास➦ 

                        वर्गीकरण और जैव विकास का बहुत ही गहरा संबंध है। सभी जीवो को उनकी शारीरिक सरंचना और कार्यो के आधार पर पहचाना जाता है ,शरीरिक बनावट में कुछ लक्षण अन्य लक्षणों की तुलना में ज्यादा परिवर्तनशील होते है अर्थात यह परिवर्तन क्रमिक होते है। 
 जीव जन्तुओ में होने वाले क्रमिक विकास को ही जैवविकास कहलाता है। 
चार्ल्स डार्विन के अनुसार ➤
           
चार्ल्स डार्विन 
जैव विकास निरंतर होने वाले परिवर्तनों की  प्रक्रिया का स्वाभाविक परिणाम है जो जीवो के बेहतर जीवन यापन के लिए आवश्यक थे।इस अवधरणा को डार्विन ने अपनी पुस्तक  '' दि  ओरिजिन ऑफ़ स्पीशीज '' में दिया है। 
 शारीरिक सरंचना में प्राचीन काल से लेकर आज तक कोई खास अंतर नहीं हुआ है। लेकिन फिर भी  ये अंतर दिखाई पड़ते है। पहले प्रकार के  आदिम जीव कहते है जिनकी शरीरिक सरंचना सरल होती है 
और दूसरी प्रकार के जीवो को उन्नत जीव  कहते है जिनकी शरीरिक सरंचनाजटिल होती है। 

पांच जगत वर्गीकरण ➤

                    वैज्ञानिक  व्हिटकर  ने जीवो की कोशिकीय सरंचना पोषण के स्रोत और शारीरिक संगठन के आधार पर समस्त जैव जगत को पांच समूहों में बांटा है -(मोनेरा ,प्रॉटिस्टा फंजाई प्लाण्टी और एनिमेलिया )इसी आधार पर इसे पांच जगत वर्गीकरण के नाम से जाना जाता है। 

(1.) मोनेरा➦                                                                                                            इस समूह के जीवों  में संगठित केन्द्रक और कोशिकांग नहीं होते है और न ही इनका शरीर बहुकोशिक होता है। इस समूह के  कुछ जीवो में   कोशिका भित्ति होती है और  कुछ में नहीं होती है।  इसी  कारण से इस समूह के जीव  बहुकोशिक जीवो से भिन्न होते है।  ये स्वपोषी अथवा विषमपोषी दोनों हो सकते है। 

जैसे - जीवाणु ,नीलहरित शैवाल , (साइनोबैक्टीरिया) माइकोप्लाज़्मा  आदि।  

 (2.) प्रॉटिस्टा ➦इस समूह में यूकैरिओटिक जीव आते है जिनमे संगठित केंद्रक एवं कोशिकांग आते है। इनमे गमन के लिए सिलिया एवं फ्लैजिला  नामक सरंचनाये पायी जाती है। इस समूह के जीव भी स्वपोषी और  विषमपोषी दोनों प्रकार के होते है। 

जैसे - शैवाल  डाईएटम प्रोटोज़ोआ  इत्यादि। 

   

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